उसने कहा ,ये दोस्ती का कैसा सिला देते हो ।
दोस्ती के नाम को ही मिटटी में मिला देते हो।
मैं नफरत से जिसको फ़ना कर देता हूँ ,
तुम मुहब्बत से फिर उसको जिला देते हो ।
मैंने हंसके कहा , दोस्ती का सिला देती हूँ ।
तेरे नफरत में अपना प्यार मिला देती हूँ ।
बद्दुआ सर पे न आये तेरे इन कलियों की ,
मैं हवा बनके फिर उनको खिला देती हूँ ।
दोस्ती के नाम को ही मिटटी में मिला देते हो।
मैं नफरत से जिसको फ़ना कर देता हूँ ,
तुम मुहब्बत से फिर उसको जिला देते हो ।
मैंने हंसके कहा , दोस्ती का सिला देती हूँ ।
तेरे नफरत में अपना प्यार मिला देती हूँ ।
बद्दुआ सर पे न आये तेरे इन कलियों की ,
मैं हवा बनके फिर उनको खिला देती हूँ ।
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