नाम तुम्हारा लेके जब मैं ,
सर को झुकाया करती हूँ ।
खुदा समझ लेते हैं की मैं ,
उनका सजदा करती हूँ ।
अरमांओँ के गहने से जब ,
प्यार में तेरे सजती हूँ ,
सूरज को शक होता हैं ,
मैं उसके लिए संवरती र्हूँ ।
साँझ ढले जब छत पे जाकर ,
राह देखती हूँ तेरा ,
चाँद गुमां कर लेता है मैं ,
उसका रस्ता तकती हूँ ।
बैठ के तन्हाई में तुमसे ,
कुछ कहती कुछ सुनती हूँ ,
वीराने ने समझ लिया ,
मैं उससे बातें करती हूँ ।
बड़ा ही मुश्किल हुआ है जीना ,
उलझन में अब रहती हूँ ।
किस- किस से जाकर बोलूँ मैं ,
तुमसे मुहब्बत करती हूँ ।
सर को झुकाया करती हूँ ।
खुदा समझ लेते हैं की मैं ,
उनका सजदा करती हूँ ।
अरमांओँ के गहने से जब ,
प्यार में तेरे सजती हूँ ,
सूरज को शक होता हैं ,
मैं उसके लिए संवरती र्हूँ ।
साँझ ढले जब छत पे जाकर ,
राह देखती हूँ तेरा ,
चाँद गुमां कर लेता है मैं ,
उसका रस्ता तकती हूँ ।
बैठ के तन्हाई में तुमसे ,
कुछ कहती कुछ सुनती हूँ ,
वीराने ने समझ लिया ,
मैं उससे बातें करती हूँ ।
बड़ा ही मुश्किल हुआ है जीना ,
उलझन में अब रहती हूँ ।
किस- किस से जाकर बोलूँ मैं ,
तुमसे मुहब्बत करती हूँ ।
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