नव वर्ष का आगाज , इस तरह रखिये,
न जाति हिन्दू ऑ , मुसलमा रखिये ।
इक मजहब , देस - प्रेम को बनाये सब ,
अपना ईमान-धरम ,हिन्दोस्तां रखिये ।
एक ही सपना , उन्नति वतन की हो ,
अपनी आँखों में , देश भक्ति ही बसा रखिये ।
झुक जाये कदमों में , खुद- ब -खुद दुनियां ,
देस का रुतबा, कुछ इस तरह बना रखिये ।
मन से भेद - भाव , द्वेष को मिटाते चले ,
दिलों में हिन्दू -मुसलमां न, हिन्दुस्तां रखिये ।
न जाति हिन्दू ऑ , मुसलमा रखिये ।
इक मजहब , देस - प्रेम को बनाये सब ,
अपना ईमान-धरम ,हिन्दोस्तां रखिये ।
एक ही सपना , उन्नति वतन की हो ,
अपनी आँखों में , देश भक्ति ही बसा रखिये ।
झुक जाये कदमों में , खुद- ब -खुद दुनियां ,
देस का रुतबा, कुछ इस तरह बना रखिये ।
मन से भेद - भाव , द्वेष को मिटाते चले ,
दिलों में हिन्दू -मुसलमां न, हिन्दुस्तां रखिये ।
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