कैसे हो भला उसका हकीकत से सामना ,
वो आईने को देखते ही तोड़ देता है ।
जिस रास्ते से जाता हो मन्दिर का रास्ता ,
वो दूर से ही उस गली को छोड़ देता है ।
हैरान हैं खुदाई भी उसके मिजाज़ से ,
इन्सान क्या खुदा से भी वो होड़ लेता है ।
नाराजगी है उसको जमाने से इस कदर,
कोई प्यार भी देता है तो मुख मोड़ लेता है ।
वो आईने को देखते ही तोड़ देता है ।
जिस रास्ते से जाता हो मन्दिर का रास्ता ,
वो दूर से ही उस गली को छोड़ देता है ।
हैरान हैं खुदाई भी उसके मिजाज़ से ,
इन्सान क्या खुदा से भी वो होड़ लेता है ।
नाराजगी है उसको जमाने से इस कदर,
कोई प्यार भी देता है तो मुख मोड़ लेता है ।
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