जब भी उठे है हाँथ मेरे ,करने को दुआ ,
माँगा यही हर बार, बस इतना ही दे खुदा ।
मेरी जिन्दगी के साथ मेरी दोस्ती रहे ,
मरने के बाद भी न हो दिल से मेरे जुदा ।
वो नादानियाँ करे तू जो माफ़ी न दे सके ,
मेरे हिस्से में लिख देना उसकी सभी सज़ा ।
वो भूल भी जाये मुझे उसे मैं नही भूलूं ,
चुपचाप दोस्ती का हक करती रहूँ अदा ।
मन्दिर में मस्जिद में क्या बन्दगी करूं ,
अब दोस्त इबादत है और दोस्ती खुदा ।
माँगा यही हर बार, बस इतना ही दे खुदा ।
मेरी जिन्दगी के साथ मेरी दोस्ती रहे ,
मरने के बाद भी न हो दिल से मेरे जुदा ।
वो नादानियाँ करे तू जो माफ़ी न दे सके ,
मेरे हिस्से में लिख देना उसकी सभी सज़ा ।
वो भूल भी जाये मुझे उसे मैं नही भूलूं ,
चुपचाप दोस्ती का हक करती रहूँ अदा ।
मन्दिर में मस्जिद में क्या बन्दगी करूं ,
अब दोस्त इबादत है और दोस्ती खुदा ।
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