हो सकता है चलकर भी ,
हम मंजिल नही पायें ,
मगर मुमकिन है हम ,
पाओं का छाला छोड़ जायेंगे ।
अँधेरे रास्तों में फिर ,
न भटकने का डर होगा ,
अपने अनुभवों का ,
वो उजाला छोड़ जायेंगे ।
जहर सब कुप्रथाओं के ,
पी जायेंगे हम इकदिन ,
कल के वास्ते
खुशियों का ,
प्याला छोड़ जायेंगे ।
हम मंजिल नही पायें ,
मगर मुमकिन है हम ,
पाओं का छाला छोड़ जायेंगे ।
अँधेरे रास्तों में फिर ,
न भटकने का डर होगा ,
अपने अनुभवों का ,
वो उजाला छोड़ जायेंगे ।
जहर सब कुप्रथाओं के ,
पी जायेंगे हम इकदिन ,
कल के वास्ते
खुशियों का ,
प्याला छोड़ जायेंगे ।
No comments:
Post a Comment