कितनी बेकरारी से , तुम्हारी राह तकती थी ,
इक इक पल कटें ऐसे, की इक सदियाँ लगती थी ।
तूने फिर भी न समझा, मुहब्बत किसको कहते हैं ,
तुम्हे दीवानगी मेरी , बस इक खेल लगती थी ।
मेरी नाराजगी पे तुमको , आई हंसी कितनी ,
तुम बेदर्द थे , तुमको न मै ऐसा समझती थी ।
दिल में तीर के जैसे , लगा कांटा चुभा कोई ,
उसी के दर्द में , रात - दिन , हर रोज जलती थी ।
अगर जो तुम बुरा होते , हम तब भी न गम करते ,
गम ये था , की नियत तेरी , कितनी बदलती थी ।
तेरी बेरुखी ने , तोड़ कर रख दिया मुझको ,
मै हर सुबह उगती थी , और हर शाम ढलती थी ।
अच्छा हुआ , झूठे सहारे , छोड़ आये हम ,
मेरी ही आरजू थी जो , मेरे अरमान छलती थी ।
इक इक पल कटें ऐसे, की इक सदियाँ लगती थी ।
तूने फिर भी न समझा, मुहब्बत किसको कहते हैं ,
तुम्हे दीवानगी मेरी , बस इक खेल लगती थी ।
मेरी नाराजगी पे तुमको , आई हंसी कितनी ,
तुम बेदर्द थे , तुमको न मै ऐसा समझती थी ।
दिल में तीर के जैसे , लगा कांटा चुभा कोई ,
उसी के दर्द में , रात - दिन , हर रोज जलती थी ।
अगर जो तुम बुरा होते , हम तब भी न गम करते ,
गम ये था , की नियत तेरी , कितनी बदलती थी ।
तेरी बेरुखी ने , तोड़ कर रख दिया मुझको ,
मै हर सुबह उगती थी , और हर शाम ढलती थी ।
अच्छा हुआ , झूठे सहारे , छोड़ आये हम ,
मेरी ही आरजू थी जो , मेरे अरमान छलती थी ।
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