रूठी रही कई रोज तक , मुझसे मेरी कलम ,
कहने लगी कुछ भी हो वो नफरत न लिखेगी ।
अरमान , मुस्कान , दो जहान लिखेगी ,
दुनियां की झूठी शानों - सौकत न लिखेगी ।
काँटों की तरह चुभके जो दामन खरोच दे ,
बिगड़ी हुई वो बाप की दौलत न लिखेगी ।
सुकून जो देते हैं , फसाने ही दिलों को ,
तो बेचैन करने वाली हकीकत न लिखेगी ।
वो बीमार है , उसको दवाई तो दे कोई ,
मुकरती हुई दुनियां की ये आदत न लिखेगी ।
हँसते हैं वो दुनिया पे , बस घरों में बैठके ,
मतलबपरस्त , ऐसी शराफत न लिखेगी ।
हालात से हारे हुए , खंडहर के वास्ते ,
मलबों में सिसकती सी , इमारत न लिखेगी ।
वो जितना गिरा , एकदिन उतना ही उठेगा ,
उसके लिए जिल्लत भड़ी किस्मत न लिखेगी ।
तूनें ख़ुदा , हाथों को जो बख्सी है ये नेमत ,
वादा है , कलम मेरी , बनावट न लिखेगी ।
कहने लगी कुछ भी हो वो नफरत न लिखेगी ।
अरमान , मुस्कान , दो जहान लिखेगी ,
दुनियां की झूठी शानों - सौकत न लिखेगी ।
काँटों की तरह चुभके जो दामन खरोच दे ,
बिगड़ी हुई वो बाप की दौलत न लिखेगी ।
सुकून जो देते हैं , फसाने ही दिलों को ,
तो बेचैन करने वाली हकीकत न लिखेगी ।
वो बीमार है , उसको दवाई तो दे कोई ,
मुकरती हुई दुनियां की ये आदत न लिखेगी ।
हँसते हैं वो दुनिया पे , बस घरों में बैठके ,
मतलबपरस्त , ऐसी शराफत न लिखेगी ।
हालात से हारे हुए , खंडहर के वास्ते ,
मलबों में सिसकती सी , इमारत न लिखेगी ।
वो जितना गिरा , एकदिन उतना ही उठेगा ,
उसके लिए जिल्लत भड़ी किस्मत न लिखेगी ।
तूनें ख़ुदा , हाथों को जो बख्सी है ये नेमत ,
वादा है , कलम मेरी , बनावट न लिखेगी ।
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