सच बोलने से शायद तू ,नफरत करे मुझसे ,
पर झूठ बोलने से भला किसका कब हुआ ।
दिल तोड़ने की यूं तो , आदत नही मेरी ,
तुमको ही गिला होता सच क्यूँ छुपा लिया ।
मेरी खता बस ये थी , की मै खेल में रहा ,
और तुमने मेरे खेल को दिल से लगा लिया ।
माना की तू सदमे में है , मेरे गुनाह से ,
तुमको क्या लगा मुझको कोई गम नही हुआ ।
आदत नही मेरी , की सबसे हाले दिल कहूँ ,
तूने कहा गम सबसे और मैंने छुपा लिया ।
तेरे आंसुओं ने मुझको , कुछ इस कदर तोडा ,
तू बद्दुआ देता है , मै देता हूँ दुआ ।
जो हो गया वो , बिता हुआ ला न सकूंगा ,
पर तू बता मेरे लिए कोई सोंची है सज़ा ।
इन्सान हूँ , इंसानियत रखी है बचा के ,
बतला कहाँ से लाऊ मै तेरे लिए खुशियाँ ।
मुजरिम तेरी खुशियों का , कूचे में है तेरे ,
माफ़ी तू दे गुनाह की , चाहे सज़ा सुना ।
पर झूठ बोलने से भला किसका कब हुआ ।
दिल तोड़ने की यूं तो , आदत नही मेरी ,
तुमको ही गिला होता सच क्यूँ छुपा लिया ।
मेरी खता बस ये थी , की मै खेल में रहा ,
और तुमने मेरे खेल को दिल से लगा लिया ।
माना की तू सदमे में है , मेरे गुनाह से ,
तुमको क्या लगा मुझको कोई गम नही हुआ ।
आदत नही मेरी , की सबसे हाले दिल कहूँ ,
तूने कहा गम सबसे और मैंने छुपा लिया ।
तेरे आंसुओं ने मुझको , कुछ इस कदर तोडा ,
तू बद्दुआ देता है , मै देता हूँ दुआ ।
जो हो गया वो , बिता हुआ ला न सकूंगा ,
पर तू बता मेरे लिए कोई सोंची है सज़ा ।
इन्सान हूँ , इंसानियत रखी है बचा के ,
बतला कहाँ से लाऊ मै तेरे लिए खुशियाँ ।
मुजरिम तेरी खुशियों का , कूचे में है तेरे ,
माफ़ी तू दे गुनाह की , चाहे सज़ा सुना ।
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