Sunday, November 25, 2012

आवारा

जीते जी ही वक्त के हाथों  ,  मैंने उसको हारा देखा ।
धूल के निचे दबा हुआ इक , टूटा हुआ सितारा देखा ।

सब ने कहा ,वो पत्थर दिल है ,दर्द नही उसको होता है ,
मैंने जब उसका दिल देखा ,  बच्चों जैसा प्यारा देखा ।

नफरत के उस सौदागर के , नफरत के कितने किस्से हैं ,
दिल ने लेकिन उसके दिल को , प्यार के हाथों हारा देखा ।

जाने किस झोंके ने आके  ,  उसके सपने तोड़े ऐसे ,
फिर उसकी आँखों ने वैसा , सपना नही दुबारा देखा ।

आँखों में सूरज के जैसी, चमक छुपी है उसकी लेकिन ,
उसने जब भी दुनियां देखी , गहराता अँधियारा देखा ।

कहाँ किसी ने देखा ,उसके कंचन जैसे पावन मन को ,
बाहर से दुनियां ने उसको , बस पागल आवारा देखा ।

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