कभी राह का पत्थर था मै ,
ठोकर रोज लगाते थे सब ।
वही आज जब मूरत बनके ,
बैठा हूँ मन्दिर के अंदर ।
रोज न जाने मेरे आगे ,
झुकने आते हैं कितने सर ।
ठोकर रोज लगाते थे सब ।
वही आज जब मूरत बनके ,
बैठा हूँ मन्दिर के अंदर ।
रोज न जाने मेरे आगे ,
झुकने आते हैं कितने सर ।
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