मै हार गई वो जीत गया ,बस इतना ही अब याद रहा ।
मै हार के भी खुशहाल हुई ,वो जीत के भी बरबाद रहा ।
डूब गया मझधार में वो , अपना दुखड़ा रोते - रोते ,
कभी नही समझा वो नादाँ , किस्मत उसके हाथ रहा ।
सोंच-सोंच के जला किया, कोई रहबर नही हुआ उसका ,
पूछा नही कभी दिल से , क्या वो अपने भी साथ रहा ।
जाल प्यार का रचा गया , और सपनों के दानें डाले ,
फंस के चिड़िया बेचैन हुई ,तब चैन से वो सैयाद रहा ।
उसने नफरत के किस्सों में , किस्सा अपना लिख डाला ,
फिर से कोई दिल टूटा , और फिर से गम आबाद रहा ।
हम ढूंढा किये उसकी खुशियाँ , इस दुनियां के वीराने में ,
वही चैन चुराकर लोगों का , बेचैनी में हर रात रहा ।
अब जाके हमको पता चला , क्यूँ उसकी रब ने नही सुनी ,
वो प्रेम का धागा कच्चा था , तब ही खाली फरियाद रहा ।
ले जश्न मना तू जीत गया , मै चली तुम्हारी महफिल से ,
अब क्या गम तू अच्छा या बुरा , मेरे जाने के बाद रहा ।
मै हार के भी खुशहाल हुई ,वो जीत के भी बरबाद रहा ।
डूब गया मझधार में वो , अपना दुखड़ा रोते - रोते ,
कभी नही समझा वो नादाँ , किस्मत उसके हाथ रहा ।
सोंच-सोंच के जला किया, कोई रहबर नही हुआ उसका ,
पूछा नही कभी दिल से , क्या वो अपने भी साथ रहा ।
जाल प्यार का रचा गया , और सपनों के दानें डाले ,
फंस के चिड़िया बेचैन हुई ,तब चैन से वो सैयाद रहा ।
उसने नफरत के किस्सों में , किस्सा अपना लिख डाला ,
फिर से कोई दिल टूटा , और फिर से गम आबाद रहा ।
हम ढूंढा किये उसकी खुशियाँ , इस दुनियां के वीराने में ,
वही चैन चुराकर लोगों का , बेचैनी में हर रात रहा ।
अब जाके हमको पता चला , क्यूँ उसकी रब ने नही सुनी ,
वो प्रेम का धागा कच्चा था , तब ही खाली फरियाद रहा ।
ले जश्न मना तू जीत गया , मै चली तुम्हारी महफिल से ,
अब क्या गम तू अच्छा या बुरा , मेरे जाने के बाद रहा ।
yashoda agrawalजी आपका बहुत बहुत आभार जो आपने इतना महत्व दिया।मैं अब इस लिंक से जुड़ चुकी हूँ । धन्यवाद
ReplyDeleteवाह...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ग़ज़ल...
उसने नफरत के किस्सों में , किस्सा अपना लिख डाला ,
फिर से कोई दिल टूटा , और फिर से गम आबाद रहा ।
आपके blog तक आना सार्थक हुआ...
अनु
expression dhnyawad aapka
ReplyDeleteले जश्न मना तू जीत गया , मै चली तुम्हारी महफिल से ,
ReplyDeleteअब क्या गम तू अच्छा या बुरा , मेरे जाने के बाद रहा ।
..जाने की बाद रह ही क्या जाता है!!
बहुत बढ़िया प्रस्तुति ..
bhut bhut shukriya aapka कविता रावत
ReplyDeleteवाह...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
अब जाके हमको पता चला,
क्यूँ उसकी रब ने नही सुनी,
वो प्रेम का धागा कच्चा था.