राहों में मिला मुझको , इक जलता हुआ दीया ,
चोट में हवाओं की , पलता हुआ दीया ।
हालात पे उसकी जरा , आई मुझे दया ,
बचाव में उसकी , मैंने दामन बढ़ा दिया ।
आदत से जलाने की , पर वो बाज न आया ,
दामन मेरा जलाने , मेरी ओर भी बढ़ा ।
मैंने बड़ा सम्भाला उसे , जब नही सम्भला ,
इक फूंक मारी मैंने , और दीया बुझा दिया ।
चोट में हवाओं की , पलता हुआ दीया ।
हालात पे उसकी जरा , आई मुझे दया ,
बचाव में उसकी , मैंने दामन बढ़ा दिया ।
आदत से जलाने की , पर वो बाज न आया ,
दामन मेरा जलाने , मेरी ओर भी बढ़ा ।
मैंने बड़ा सम्भाला उसे , जब नही सम्भला ,
इक फूंक मारी मैंने , और दीया बुझा दिया ।
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