Thursday, November 29, 2012

मै

मै वो बला हूँ , जिससे पार पा न सकेगा ।
मै वो अदा हूँ , जिसके पार जा न सकेगा ।

तू कह तो तेरी सोंच के , परतों को खोल दूँ ,
उलझाऊंगी  ऐसे  की ,  पार आ न सकेगा ।

वो  आग  हूँ  , जो  दूर  से  भी देती है जलन ,
वो पानी हूँ ,  जिससे जलन बुझा न सकेगा ।

तुझको  बड़ा  गुरुर  है  ,  अपने  वजूद  पर ,
मेरी शख्सियत के पास भी ,तू आ न सकेगा।

हर खेल से वाकिफ हूँ मै , माहिर हूँ खिलाडी ,
खेलूं  अगर  जो तुझसे  ,  तू  हरा  न सकेगा ।

किस्मत की दौड़ में भी ,  आगे हूँ मै तुझसे ,
तू दौड़ेगा कितना भी ,  पास आ न सकेगा ।

मै  वो दवा रखती हूँ , जो भरते हैं जख्म को ,
मै  वो जख्म भी देती हूँ , जो मिटा न सकेगा ।

मै  साथ  दूँ  तो  तू  ही  ,  बन  जायेगा  खुदा ,
मै  तोड़ दूँ तो खुद को भी , तू  पा न सकेगा ।

कभी सोंच तुझपे मैंने , किये कितने करम हैं ,
इस जिन्दगी भी कर्ज़ तू  ,  चूका न सकेगा ।

तुझको  नही  पता ,  मेरे  हुनर  की  हकीकत ,
मेरे कूंचे से भी निकल के , कहीं जा न सकेगा ।

कुछ  और  देर  रुक  ,  देख  होगा  तमाशा ,
वादा  है  तू  तमाशा  ये  ,  भुला  न  सकेगा ।

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