दुनियां से जब इंसानियत ही उठ गई यारों ,
हम अपने आप को भला इंसान कहे क्यों ।
इक दौर था जब खुद के हम भी नही हुए ,
फिर तुम न हुए मेरे तो बेइमान कहे क्यों ।
रास्तों के पत्थर भी तो रस्ता दिखाते हैं ,
मन्दिर के पत्थर को ही भगवान कहे क्यों ।
न रख सके ईमान मुसल्लम ऐ दोस्तों ,
वो झूठ - मुठ खुद को मुसलमान कहे क्यों ।
मैंने कहा की झूठ बोल के मिलेगा क्या ,
बोला ; नही जब सच का यहाँ मान कहे क्यों ।
रहने दो बाकी बात को बाकी मेरे दिल में ,
हो जाओगे तुम ज्यादा परेशान कहे क्यों ।
हम अपने आप को भला इंसान कहे क्यों ।
इक दौर था जब खुद के हम भी नही हुए ,
फिर तुम न हुए मेरे तो बेइमान कहे क्यों ।
रास्तों के पत्थर भी तो रस्ता दिखाते हैं ,
मन्दिर के पत्थर को ही भगवान कहे क्यों ।
न रख सके ईमान मुसल्लम ऐ दोस्तों ,
वो झूठ - मुठ खुद को मुसलमान कहे क्यों ।
मैंने कहा की झूठ बोल के मिलेगा क्या ,
बोला ; नही जब सच का यहाँ मान कहे क्यों ।
रहने दो बाकी बात को बाकी मेरे दिल में ,
हो जाओगे तुम ज्यादा परेशान कहे क्यों ।
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