शिकायतों का सिलसिला चलेगा बहुत दिन ,
लगता है दिल में भर गया बहुत गुबार है ।
मुफलिसी के दिन गुजर गये हैं दोस्तों ,
जेब में पैसा है अब अपने हजार हैं ।
चाहते तो सब हैं की इंसानियत रहे ,
खुद पे बात आई तो फिर सब बेकार है ।
कल तलक जो चैन था सुकून था दिल का ,
दर्द बनके अब वही सर पे सवार है ।
सालों बाद उनका संदेशा मिला हमें ,
लिखा था की अब भी हम तेरे बीमार हैं ।
जमाने बाद भी वफा का रंग न उतरा ,
इधर भी प्यार है अभी उधर भी प्यार है ।
लगता है दिल में भर गया बहुत गुबार है ।
मुफलिसी के दिन गुजर गये हैं दोस्तों ,
जेब में पैसा है अब अपने हजार हैं ।
चाहते तो सब हैं की इंसानियत रहे ,
खुद पे बात आई तो फिर सब बेकार है ।
कल तलक जो चैन था सुकून था दिल का ,
दर्द बनके अब वही सर पे सवार है ।
सालों बाद उनका संदेशा मिला हमें ,
लिखा था की अब भी हम तेरे बीमार हैं ।
जमाने बाद भी वफा का रंग न उतरा ,
इधर भी प्यार है अभी उधर भी प्यार है ।
बहुत सुन्दर नज़्म लिखी आपने। बधाई स्वीकार करें।
ReplyDeletebhut bhut dhnyawad Brijesh Singh ji
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