घूरती नजरें , कहाँ - कहाँ नही गईं ।
मासूमियत जहाँ थी, बस वहां नही गईं ।
महक उठे खिजाब से ,बालों के पोर - पोर ,
पर आँखों के निचे से , झुरियां नही गईं ।
जाने को तो चले गयें , मौसम जवानी के ,
पर खाबों से , हसीन सर्दियाँ नही गईं ।
होठों से टपकाते रहें , लालच की चासनी ,
हया चली गईं , बेशर्मीयाँ नही गईं ।
उम्र का लिहाज या रब , जाने कहाँ गया ,
बुढापे में भी , हाले - इश्किया नही गई ।
मासूमियत जहाँ थी, बस वहां नही गईं ।
महक उठे खिजाब से ,बालों के पोर - पोर ,
पर आँखों के निचे से , झुरियां नही गईं ।
जाने को तो चले गयें , मौसम जवानी के ,
पर खाबों से , हसीन सर्दियाँ नही गईं ।
होठों से टपकाते रहें , लालच की चासनी ,
हया चली गईं , बेशर्मीयाँ नही गईं ।
उम्र का लिहाज या रब , जाने कहाँ गया ,
बुढापे में भी , हाले - इश्किया नही गई ।
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