इतनी बढ़ी मुश्किल की हम , मुश्किल पे रो पड़ें ।
हालत जो देखी दिल की , अपने दिल पे रो पड़ें ।
थक गये चलते , जब कोई मुकाम न मिला ,
दूर से दिखती हुई , मंजिल पे रो पड़े ।
समंदर को छान कर भी , जब मोती नही मिला ,
लिपट के समन्दर से हम , साहिल पे रो पड़ें ।
ना जाने किस लिए , वो गुनहगार बन गया ,
मजबूरी उसकी सोंच हम , कातिल पे रो पड़े ।
तन्हाइयों से उब कर , भागे थे महफिल में ,
तन्हाईयाँ मिटी न हम ,महफिल पे रो पड़े ।
हमको भी गम हुआ बहुत, उनको भी गम हुआ ,
वो हमसे मिलके रो पड़े , हम उनसे मिलके रो पड़ें ।
हालत जो देखी दिल की , अपने दिल पे रो पड़ें ।
थक गये चलते , जब कोई मुकाम न मिला ,
दूर से दिखती हुई , मंजिल पे रो पड़े ।
समंदर को छान कर भी , जब मोती नही मिला ,
लिपट के समन्दर से हम , साहिल पे रो पड़ें ।
ना जाने किस लिए , वो गुनहगार बन गया ,
मजबूरी उसकी सोंच हम , कातिल पे रो पड़े ।
तन्हाइयों से उब कर , भागे थे महफिल में ,
तन्हाईयाँ मिटी न हम ,महफिल पे रो पड़े ।
हमको भी गम हुआ बहुत, उनको भी गम हुआ ,
वो हमसे मिलके रो पड़े , हम उनसे मिलके रो पड़ें ।
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