लाऊं कहाँ से ढूंढ़कर , मैं तेरे लिए ख़ुशी ,
जब तू ही खुद अपना जहाँ ,जला के चला है ।
मैं साथ - साथ तेरे चलूं , बोल किस तरह ,
तू झूठ को ही हमनवा , बना के चला है ।
अफ़सोस ये की रखता है , फूलों से बेरुखी ,
तू रौंद के कलियों को , मुस्कुरा के चला है ।
जितनी भी बार तूने , मारा है दर्द को ,
उतनी ही बार मात उससे , खा के चला है ।
मैं लेके दवा दर्द की , दर पे खड़ी रही ,
हर बार जख्म मुझसे तू , छुपा के चला है ।
मैं छोड़ के भी साथ तेरा , छोड़ न पाई ,
और बार - बार हाथ तू , छुड़ा के चला है ।
लाऊं कहाँ से ढूंढ़कर , मैं तेरे लिए ख़ुशी ,
जब तू ही खुद अपना जहाँ ,जला के चला है ।
जब तू ही खुद अपना जहाँ ,जला के चला है ।
मैं साथ - साथ तेरे चलूं , बोल किस तरह ,
तू झूठ को ही हमनवा , बना के चला है ।
अफ़सोस ये की रखता है , फूलों से बेरुखी ,
तू रौंद के कलियों को , मुस्कुरा के चला है ।
जितनी भी बार तूने , मारा है दर्द को ,
उतनी ही बार मात उससे , खा के चला है ।
मैं लेके दवा दर्द की , दर पे खड़ी रही ,
हर बार जख्म मुझसे तू , छुपा के चला है ।
मैं छोड़ के भी साथ तेरा , छोड़ न पाई ,
और बार - बार हाथ तू , छुड़ा के चला है ।
लाऊं कहाँ से ढूंढ़कर , मैं तेरे लिए ख़ुशी ,
जब तू ही खुद अपना जहाँ ,जला के चला है ।
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