नते बिगड़ते बवालों में , नेताओं के चालों में,
दुनिया भर के सवालों में , दिल्ली फँसी घोटालों में।
कॉमनवेल्थ की आड़ में , कॉंग्रेस की सरकार में ,
कलमाडी की वार में , दिल्ली दबी बेकार में।
खेलों की तैयारी में , वक्त की मारामारी में,
लालच की बीमारी में , दिल्ली गई लाचारी में।
भारत माँ के आनों पे , मक्कारी भरे बहनों पे,
ताले लगे जुबानों पे , दिल्ली के मुस्कानों पे।
जनता थी भोलेपन में , मैल भरा उनके मन में,
लगे खेलने वो धन में , दिल्ली के ही आँगन में।
अरबों में और खरबों में , नेताओं के तलबों में,
रंग – बिरंगे जलबो में , दिल्ली खरी है मलबों में।
आँखों में आंसू भरके , कितनों को बेघर कर के,
खेला किये वो बढ़ – बढ़ के, दिल्ली चुप हुई डरके।
रही खबर बस कानों में , हँसते गाते मेहमानों में ,
टेबल – कुर्सी खानों में , दिल्ली सजी दुकानों में।
झूट दबे सच बोला जाये, देशभक्ति रस घोला जाये ,
बेईमानों को तोला जाये , दिल्ली अब मुँह खोला जाये।
दुनिया भर के सवालों में , दिल्ली फँसी घोटालों में।
कॉमनवेल्थ की आड़ में , कॉंग्रेस की सरकार में ,
कलमाडी की वार में , दिल्ली दबी बेकार में।
खेलों की तैयारी में , वक्त की मारामारी में,
लालच की बीमारी में , दिल्ली गई लाचारी में।
भारत माँ के आनों पे , मक्कारी भरे बहनों पे,
ताले लगे जुबानों पे , दिल्ली के मुस्कानों पे।
जनता थी भोलेपन में , मैल भरा उनके मन में,
लगे खेलने वो धन में , दिल्ली के ही आँगन में।
अरबों में और खरबों में , नेताओं के तलबों में,
रंग – बिरंगे जलबो में , दिल्ली खरी है मलबों में।
आँखों में आंसू भरके , कितनों को बेघर कर के,
खेला किये वो बढ़ – बढ़ के, दिल्ली चुप हुई डरके।
रही खबर बस कानों में , हँसते गाते मेहमानों में ,
टेबल – कुर्सी खानों में , दिल्ली सजी दुकानों में।
झूट दबे सच बोला जाये, देशभक्ति रस घोला जाये ,
बेईमानों को तोला जाये , दिल्ली अब मुँह खोला जाये।
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