देकर इक पिंजरा सोने का , उड़ान छिन लेती दुनिया ,
आवाज उठाने से पहले , जुबान छिन लेती दुनिया।
टकराकर रोज किनारों से , लहरों ने रोना सीख लिया,
जख्मों का पीब बना जैसे , आंसूं से धोना सीख लिया।
इक आह की लौ जो जलती थी ,वो वक्त के आगे नही टिकी,
इक खुशी कभी जो दिखती थी , ना जाने फिर क्यूँ नही दिखी।
इस डर से ना मुस्काए की , मुस्कान छिन लेती दुनिया,
आवाज उठाने से पहले , जुबान छिन लेती दुनिया।
पिसते जीवन की चक्की में , तपतें चूल्हों की भट्टी में,
दुनिया की खातिरदारी में , अब रक्त बचा ना पुट्ठी में।
गम खा-खा कर भी गुमसुम है , आंसू पी के भी मौन हैं ये,
है शब्द मगर निः शब्द खड़े , ना जाने भी की कौन हैं ये।
कभी बेटी कभी बहु कहकर , पहचान छिन लेती दुनिया,
आवाज उठाने से पहले , जुबान छिन लेती दुनिया।
मेरे भी सपने फूटेंगे , अंकुर का ऐसा दावा है,
धीरे - धीरे चिंगारी को , बनना ही इकदिन लावा है।
इक हाहाकार उठेगी जब , तब तुंफा और प्रलय होगा,
फिर से इस सारी सृष्टि पर , ममता और प्यार का जय होगा।
टूटी - फूटी - झूटी ही सहीं , अरमान छिन लेती दुनिया ,
आवाज उठाने से पहले , जुबान छिन लेती दुनिया।।
आवाज उठाने से पहले , जुबान छिन लेती दुनिया।
टकराकर रोज किनारों से , लहरों ने रोना सीख लिया,
जख्मों का पीब बना जैसे , आंसूं से धोना सीख लिया।
इक आह की लौ जो जलती थी ,वो वक्त के आगे नही टिकी,
इक खुशी कभी जो दिखती थी , ना जाने फिर क्यूँ नही दिखी।
इस डर से ना मुस्काए की , मुस्कान छिन लेती दुनिया,
आवाज उठाने से पहले , जुबान छिन लेती दुनिया।
पिसते जीवन की चक्की में , तपतें चूल्हों की भट्टी में,
दुनिया की खातिरदारी में , अब रक्त बचा ना पुट्ठी में।
गम खा-खा कर भी गुमसुम है , आंसू पी के भी मौन हैं ये,
है शब्द मगर निः शब्द खड़े , ना जाने भी की कौन हैं ये।
कभी बेटी कभी बहु कहकर , पहचान छिन लेती दुनिया,
आवाज उठाने से पहले , जुबान छिन लेती दुनिया।
मेरे भी सपने फूटेंगे , अंकुर का ऐसा दावा है,
धीरे - धीरे चिंगारी को , बनना ही इकदिन लावा है।
इक हाहाकार उठेगी जब , तब तुंफा और प्रलय होगा,
फिर से इस सारी सृष्टि पर , ममता और प्यार का जय होगा।
टूटी - फूटी - झूटी ही सहीं , अरमान छिन लेती दुनिया ,
आवाज उठाने से पहले , जुबान छिन लेती दुनिया।।
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