ये गम नहीं की गैरों ने कस्ती है डुबोई
हैं गम मुझे अपने खड़े तमाशबीन थे ,
रह-रह के उसको दर्द ये बेचैन करता हैं ,
उसके ख़ाब से ज्यादा मेरे सच हसीन थे||
हैं गम मुझे अपने खड़े तमाशबीन थे ,
रह-रह के उसको दर्द ये बेचैन करता हैं ,
उसके ख़ाब से ज्यादा मेरे सच हसीन थे||
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