Sunday, July 16, 2017

वसंत

हारों का मौसम , नज़ारों का मौसम ,
है आया धरा के  ,   श्रृंगारों का मौसम  ,

झरें पीले पत्तें , थी सूनी सी डाली ,
लगे नए पल्लव . अब छाई हरियाली ,

है सजने लगे अब  लताओं की लड़ियाँ ,
कली खोलती , धीरे-धीरे पंखुरियां ,

लगने लगे आम-लीची पे मंजर   ,
भंवरा भटकता है , बौराया बनकर ,

चलने लगी है , वसंती हवाएँ ,
घुसती है तन में , और मन गुदगुदाए ,

खड़े प्रेम के देवता, लेके तरकश ,
सामने लगा कोई, ख्वाबों में बरबस ,

हाथों में वीणा ,हैं आसन कमल के ,
आई धरा पे है,  वागीशा  चलके ,

मिटाती अँधेरा, लुटाती है सदगुण ,
जला ज्ञान दीपक, हटाती है अवगुण ,

दीवाना है अम्बर, मचलती जमीं है,
है सबको पता , ये वसंत पंचमी है || 

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