हारों का मौसम , नज़ारों का मौसम ,
है आया धरा के , श्रृंगारों का मौसम ,
झरें पीले पत्तें , थी सूनी सी डाली ,
लगे नए पल्लव . अब छाई हरियाली ,
है सजने लगे अब लताओं की लड़ियाँ ,
कली खोलती , धीरे-धीरे पंखुरियां ,
लगने लगे आम-लीची पे मंजर ,
भंवरा भटकता है , बौराया बनकर ,
चलने लगी है , वसंती हवाएँ ,
घुसती है तन में , और मन गुदगुदाए ,
खड़े प्रेम के देवता, लेके तरकश ,
सामने लगा कोई, ख्वाबों में बरबस ,
हाथों में वीणा ,हैं आसन कमल के ,
आई धरा पे है, वागीशा चलके ,
मिटाती अँधेरा, लुटाती है सदगुण ,
जला ज्ञान दीपक, हटाती है अवगुण ,
दीवाना है अम्बर, मचलती जमीं है,
है सबको पता , ये वसंत पंचमी है ||
है आया धरा के , श्रृंगारों का मौसम ,
झरें पीले पत्तें , थी सूनी सी डाली ,
लगे नए पल्लव . अब छाई हरियाली ,
है सजने लगे अब लताओं की लड़ियाँ ,
कली खोलती , धीरे-धीरे पंखुरियां ,
लगने लगे आम-लीची पे मंजर ,
भंवरा भटकता है , बौराया बनकर ,
चलने लगी है , वसंती हवाएँ ,
घुसती है तन में , और मन गुदगुदाए ,
खड़े प्रेम के देवता, लेके तरकश ,
सामने लगा कोई, ख्वाबों में बरबस ,
हाथों में वीणा ,हैं आसन कमल के ,
आई धरा पे है, वागीशा चलके ,
मिटाती अँधेरा, लुटाती है सदगुण ,
जला ज्ञान दीपक, हटाती है अवगुण ,
दीवाना है अम्बर, मचलती जमीं है,
है सबको पता , ये वसंत पंचमी है ||
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