मेरा शहर ही कहता है मुसाफिर मुझको ,
उसे आता है मजा इस तरह बुलाने से |
मेरी गलियाँ देखती है अजनबी की तरह ,
जिनसे रिश्ता था कितने ही जमाने से |
जिन होठो पर दुआए हुआ करती थी ,
अब मुकरती है दो पल को मुस्कुराने से |
न जाने वक्त ने उनके क्या है कान भरे ,
वो समझते ही नही बात अब समझाने से |
कुछ अरसे में ही कितना कुछ बीत गया ,
अब तो मुश्किल है बीते वो दिन आने से |
उसे आता है मजा इस तरह बुलाने से |
मेरी गलियाँ देखती है अजनबी की तरह ,
जिनसे रिश्ता था कितने ही जमाने से |
जिन होठो पर दुआए हुआ करती थी ,
अब मुकरती है दो पल को मुस्कुराने से |
न जाने वक्त ने उनके क्या है कान भरे ,
वो समझते ही नही बात अब समझाने से |
कुछ अरसे में ही कितना कुछ बीत गया ,
अब तो मुश्किल है बीते वो दिन आने से |
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