उसे आदत पड़ी कुछ इस तरह नुमाइश की ,
अपनी बदनीयती को ही शान बना रखा है |
बचा के रखना मुश्किल हुआ ईमान धरम ,
इसी ने इन्सान को इन्सान बना रखा है |
किसी का दर्द देखते हैं , तमाशे की तरह ,
मतलबीपन ने , बेजुबान बना रखा है |
पाक सीरत पे , पड़ गई मैलों की परत ,
झूठी तारीफ से , पहचान बना रखा है |
सिक्कों से तौलते हैं , रोज ही जमीरों को ,
दौलती - रुतबे ने , गुमान बना रखा है |
पता होके भी जिन्दगी की , हर सच्चाई ,
जाने कैसे ये , इत्मिनान बना रखा है |
भूखे सोतें हैं कई लोग , रोज सडकों पर ,
किसीने झुग्गी पर , मकान बना रखा है |
अब तो राहों में तन्हा हुआ चलना मुश्किल ,
भुखमरी ने , कई शैतान बना रखा है |
वो खुश हैं मार के हक , कई गरीबों का ,
उन्हें ऐय्याशी ने , बेईमान बना रखा है |
झूठी तारीफ क्या कर दी , चापलूसों ने ,
उसने जमीं को , आसमान बना रखा है |
छुपाके रखते हैं सच्चाई को , तिजोरी में ,
दिखाने को कई , अभियान बना रखा है |
बातें करते है सभाओं में संस्कारों की ,
खुद अश्लीलता पे , ध्यान बना रखा है |
जहाँ बस खो गया है , झूठी दुनियादारी में ,
सच्चे दिल को तो अब , पासान बना रखा है |
भूल बैठा है अब इंसानियत , इंसा अपनी ,
मन के शैतान को , भगवान बना रखा है |
करें क्या बात जमाने से हम , मुहब्बत की ,
इसने ही दोजख भी , गुलिस्तान बना रखा है |
अपनी बदनीयती को ही शान बना रखा है |
बचा के रखना मुश्किल हुआ ईमान धरम ,
इसी ने इन्सान को इन्सान बना रखा है |
किसी का दर्द देखते हैं , तमाशे की तरह ,
मतलबीपन ने , बेजुबान बना रखा है |
पाक सीरत पे , पड़ गई मैलों की परत ,
झूठी तारीफ से , पहचान बना रखा है |
सिक्कों से तौलते हैं , रोज ही जमीरों को ,
दौलती - रुतबे ने , गुमान बना रखा है |
पता होके भी जिन्दगी की , हर सच्चाई ,
जाने कैसे ये , इत्मिनान बना रखा है |
भूखे सोतें हैं कई लोग , रोज सडकों पर ,
किसीने झुग्गी पर , मकान बना रखा है |
अब तो राहों में तन्हा हुआ चलना मुश्किल ,
भुखमरी ने , कई शैतान बना रखा है |
वो खुश हैं मार के हक , कई गरीबों का ,
उन्हें ऐय्याशी ने , बेईमान बना रखा है |
झूठी तारीफ क्या कर दी , चापलूसों ने ,
उसने जमीं को , आसमान बना रखा है |
छुपाके रखते हैं सच्चाई को , तिजोरी में ,
दिखाने को कई , अभियान बना रखा है |
बातें करते है सभाओं में संस्कारों की ,
खुद अश्लीलता पे , ध्यान बना रखा है |
जहाँ बस खो गया है , झूठी दुनियादारी में ,
सच्चे दिल को तो अब , पासान बना रखा है |
भूल बैठा है अब इंसानियत , इंसा अपनी ,
मन के शैतान को , भगवान बना रखा है |
हमने तो दिल की इक दुनियां अलग बसाई है ,
इसी ने जीना बस , आसान बना रखा है |करें क्या बात जमाने से हम , मुहब्बत की ,
इसने ही दोजख भी , गुलिस्तान बना रखा है |
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