जरा बैठो कहो कैसे हो और अब तक कहाँ थे तुम ,
तुम्हारी खैर सुनने को बड़ा बेताब था ये दिल ।
न पूछो तुम को खोने का हमें मलाल था कितना ,
तुम्हारी चाह में था वक्त का कटना हुआ मुश्किल ।
तुम्हारे बिन ये मेरी जिन्दगी कुछ इस तरह से थी,
भटकता नाव सागर में और मिलता न हो साहिल ।
न तुमने बेवफाई की न था मैंने वफा छोड़ा ,
सोचो कौन है मुजरिम हमारी खुशियों का कातिल ।
हमारी मुश्किलें थी ये की हम जितना चले ज्यादा ,
उतनी दूर हमसे और भी होती गई मंजिल ।
बिना ही जुर्म के हम किसलिए पाते रहे सजा ,
झूठी जिद से बोलो यार मेरे क्या हुआ हासिल ।
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