गये थे दूर वो बस मापने गहराई चाहत की ,
निकल आये अब इतनी दूर वापस जा नही पाए ।
बघाड़ा करते थे बड़ी शेखीयाँ अपने तजुर्बे की ,
जब उलझे तो खुद की उलझने सुलझा नही पाए ।
नही चल पाया दिल पे जोर चाहत में किसी का भी ,
दीवाने मिट गये दुनिया को ये समझा नही पाए ।
सच्चे प्यार में चालाकियां अच्छी नही लगती ,
अब कहते है जब मक्कारी से कुछ पा नही पाए ।
वो हंसते हैं मगर आँखों में कई दर्द है उनके ,
उसकी याद बरसों बाद भी वो भुला नही पाए ।
जिस दिन से जहाँ के वास्ते तोडा वफा का दिल ,
वो अपनी शाने - सूरत पे कभी इतरा नही पाए ।
जमाने भर से कहते है मुहब्बत झूठ है लेकिन ,
जो है सच्चाई दिल की वो कभी झुठला नही पाए ।
वो कहते नही पर जानता है हर कोई ये सच ,
इस दिल के बीमारी की दवा कोई पा नही पाए ।
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