बड़ा मुश्किल समझ पाना की ये संसार कैसा है ।
बाहर है उजाला मन में ये अंधकार कैसा है ।
कडकती बिजलियाँ छाई घटा घनघोर हो नभ में ,
तो अँधा भी बता देगा की ये आसार कैसा है।
कडकती बिजलियाँ छाई घटा घनघोर हो नभ में ,
तो अँधा भी बता देगा की ये आसार कैसा है।
भरा है खोट दिल में होठ पे मुस्कान प्यारी सी ,
लगते हैं गले सबके नया व्यवहार कैसा है ।
संशय से सभी इक दूसरे को देखा करते है ,
दिखाने को मगर दुनिया से झूठा प्यार कैसा है ।
बड़ी जितनी मिली कुर्सी ,वो उतने बड़े शातिर ,
किसी और के हक पे मचा ये मार कैसा है ।
कोई कह दे उन्हें सच बात तो नाराज होते है ,
सच से भागने वाला , ये समझदार कैसा है ।
बिगाड़े जा रहे हैं हम ही , अपना आने वाला कल ,
कहते हैं जहाँ में बढ़ रहा व्यभिचार कैसा है ।
जरा सा हम बदल जाये ,जरा सी सोच जो बदले ,
तो मानवता की खातिर किसी उपकार जैसा है ।
संशय से सभी इक दूसरे को देखा करते है ,
दिखाने को मगर दुनिया से झूठा प्यार कैसा है ।
बड़ी जितनी मिली कुर्सी ,वो उतने बड़े शातिर ,
किसी और के हक पे मचा ये मार कैसा है ।
कोई कह दे उन्हें सच बात तो नाराज होते है ,
सच से भागने वाला , ये समझदार कैसा है ।
बिगाड़े जा रहे हैं हम ही , अपना आने वाला कल ,
कहते हैं जहाँ में बढ़ रहा व्यभिचार कैसा है ।
जरा सा हम बदल जाये ,जरा सी सोच जो बदले ,
तो मानवता की खातिर किसी उपकार जैसा है ।
No comments:
Post a Comment