Tuesday, June 4, 2013

इश्क के दर पे चढ़ादी सीधी - सादी जिन्दगी

जान छोड़ी जा सके न इश्क छोड़ा जा सके ,
या खुदाया किसकदर मुश्किल बनादी जिन्दगी ।

एक दिन ऐसा भी था  बस प्यार था और खुशियाँ थी ,
जाने हमने किस गली में वो गंवादी जिंदगी ।

लोग सारे हंस रहे हैं छीन कर  मासूमियत ,
बेसबब ही दाव पर हमने लगादी जिंदगी ।

क्या हंसी वो दिन थे अपने कितनी मीठी रात थी ,
इश्क के दर पे चढ़ादी सीधी - सादी जिन्दगी । 

1 comment:

  1. लोग सारे हंस रहे हैं छीन कर मासूमियत ,
    बेसबब ही दाव पर हमने लगादी जिंदगी ।

    क्या हंसी वो दिन थे अपने कितनी मीठी रात थी ,
    इश्क के दर पे चढ़ादी सीधी - सादी जिन्दगी ।
    वाह!

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