ऐ दिल सम्भल के चल यहाँ कांटे भी बहुत है ,,,
चाहत में कली की कहीं जख्मी न हो जिगर ।
नाजुक सा अभी तू तुझे मालुम नही है ,,
फिरते हैं लुटेरे बहुत आशिक के नाम पर ।
रहते हैं दिल में जबतलक उनको पसंद हो ,,
जब जाते हैं रख देते हैं टुकड़ों में तोडकर ।
कोई गिला शिकवा करो आयें न लौट कर ,
ऐ दिल न किया कर तू ऐतवार टूटकर ।
चाहत में कली की कहीं जख्मी न हो जिगर ।
नाजुक सा अभी तू तुझे मालुम नही है ,,
फिरते हैं लुटेरे बहुत आशिक के नाम पर ।
रहते हैं दिल में जबतलक उनको पसंद हो ,,
जब जाते हैं रख देते हैं टुकड़ों में तोडकर ।
कोई गिला शिकवा करो आयें न लौट कर ,
ऐ दिल न किया कर तू ऐतवार टूटकर ।
bahot khoob
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