लौटा बरस के सावन मगर , रह गई नमी ,
जैसे मौसम को हो किसी बात की कमी |
बूंदों ने कभी मुरके देखा नही इकबार ,
और अधूरी चाहत में प्यासी रह गई जमीं|
जैसे मौसम को हो किसी बात की कमी |
बूंदों ने कभी मुरके देखा नही इकबार ,
और अधूरी चाहत में प्यासी रह गई जमीं|
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