हम भी कभी - कभी यारों दिवानापन कर लेते हैं ।
जो जज्बात न समझें उनकी ख़ामोशी पढ़ लेते हैं ।
फूलों की हसरत है सबको काँटे कोई नही चुनता ,
इक हम हैं अपने दामन में खुद काँटे भर लेते हैं ।
इससे उससे सबसे अब से लड़ना हमने छोड़ दिया ,
जब भी तन्हा होते हैं तो खुद से ही लड़ लेते हैं ।
अब हम नही किया करते हैं तेरी बेवफाई का गम ,
जब भी याद तेरी आती है हम तौबा कर लेते हैं । ।
जो जज्बात न समझें उनकी ख़ामोशी पढ़ लेते हैं ।
फूलों की हसरत है सबको काँटे कोई नही चुनता ,
इक हम हैं अपने दामन में खुद काँटे भर लेते हैं ।
इससे उससे सबसे अब से लड़ना हमने छोड़ दिया ,
जब भी तन्हा होते हैं तो खुद से ही लड़ लेते हैं ।
अब हम नही किया करते हैं तेरी बेवफाई का गम ,
जब भी याद तेरी आती है हम तौबा कर लेते हैं । ।
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