कितना अजीब लगता है जब आप अपनी ही रचना किसी और के पेज पर देखते हैं ।
वो भी बिना अपने नाम के । सचमुच मैं आज फिर चौक गई । कमाल है न ।
इसपे एक पंक्ति सुनाती हूँ बिलकुल ताजा ताजा है।
* न मैं न मेरा नाम ना मेरी बात थी ,
ताज्जुब ये है मैं फिर भी उसके साथ थी ।*
वो भी बिना अपने नाम के । सचमुच मैं आज फिर चौक गई । कमाल है न ।
इसपे एक पंक्ति सुनाती हूँ बिलकुल ताजा ताजा है।
* न मैं न मेरा नाम ना मेरी बात थी ,
ताज्जुब ये है मैं फिर भी उसके साथ थी ।*
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