मैं हर बार ठोकर खाकर भी कभी कम नही पड़ती ।
गिरती हूँ संभलती हूँ मगर मैं गम नही करती ।
ख़ुशी न आये घर तो क्या गम मिल जाए गर तो क्या ,
मैं पाने और खोने का कभी मातम नही करती ।
वो जो जख्म थे नासूर से गहरे हुए दिल पर ,
थी उसकी दवा पर मैं ही अब मरहम नही करती ।
किसी से पूछकर बरसात या तूफां नही आते ,
किसी के होने न होने का गम मौसम नही करती ।
गिरती हूँ संभलती हूँ मगर मैं गम नही करती ।
ख़ुशी न आये घर तो क्या गम मिल जाए गर तो क्या ,
मैं पाने और खोने का कभी मातम नही करती ।
वो जो जख्म थे नासूर से गहरे हुए दिल पर ,
थी उसकी दवा पर मैं ही अब मरहम नही करती ।
किसी से पूछकर बरसात या तूफां नही आते ,
किसी के होने न होने का गम मौसम नही करती ।
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