इंसान की फितरत है , बदलता है रोज - रोज ।
पहुंचे न कहीं फिर भी , चलता है रोज - रोज ।
अपने ही गम क्या कम हैं , जलाने को उम्र भर ,
जो ऑरों की ख़ुशी देख के , जलता है रोज - रोज ।
इक बार की बरबादी से , क्या जी नही भरा ,
दीवानगी में दिल क्यूँ , मचलता है रोज - रोज ।
हर सुबह आस बंधती है , दीदारे यार की ,
दिल शाम ढलते - ढलते , ढलता है रोज - रोज ।
देखो जो बीज प्यार के , तुम 'बो' के गये थे ,
पतझड़ के मौसम भी , फलता है रोज - रोज ।
चढती है जब दीवानगी , सर पे सनम तेरी ,
क्या - क्या कहें दिल कैसे , बहलता है रोज - रोज ।
पहुंचे न कहीं फिर भी , चलता है रोज - रोज ।
अपने ही गम क्या कम हैं , जलाने को उम्र भर ,
जो ऑरों की ख़ुशी देख के , जलता है रोज - रोज ।
इक बार की बरबादी से , क्या जी नही भरा ,
दीवानगी में दिल क्यूँ , मचलता है रोज - रोज ।
हर सुबह आस बंधती है , दीदारे यार की ,
दिल शाम ढलते - ढलते , ढलता है रोज - रोज ।
देखो जो बीज प्यार के , तुम 'बो' के गये थे ,
पतझड़ के मौसम भी , फलता है रोज - रोज ।
चढती है जब दीवानगी , सर पे सनम तेरी ,
क्या - क्या कहें दिल कैसे , बहलता है रोज - रोज ।
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