इस अजनबी दुनियां में आके लगता है ,
वो भुला हुआ मेरा शहर अच्छा था ।
ये आसमान सी ऊँची उठी दीवारों से ,
वो मेरा मिटटी का टूटा हुआ घर अच्छा था ।
इस दम घोटती बंद - बंद गलियों से ,
वो पगडंडी पे चलना वो डगर अच्छा था ।
वो परियों की कहानी ,वो राजा - रानी ,
वो भूत का , चुड़ैल का डर अच्छा था ।
न खोने का गम था , न पाने की तलब,
वो सादगी ,वो भोलापन ,वो उमर अच्छा था ।
वो भुला हुआ मेरा शहर अच्छा था ।
ये आसमान सी ऊँची उठी दीवारों से ,
वो मेरा मिटटी का टूटा हुआ घर अच्छा था ।
इस दम घोटती बंद - बंद गलियों से ,
वो पगडंडी पे चलना वो डगर अच्छा था ।
वो परियों की कहानी ,वो राजा - रानी ,
वो भूत का , चुड़ैल का डर अच्छा था ।
न खोने का गम था , न पाने की तलब,
वो सादगी ,वो भोलापन ,वो उमर अच्छा था ।
No comments:
Post a Comment