मेरा मतलब नही पड़ता की मैं उस राह को देखूं ,
की जिस राह से मेरा खुदा , गुजरा नही करता ।
बहुत मंदिर बहुत मस्जिद , यूँ तो राहों में मिलते हैं ,
पर हर एक दर पे अपना सर , झुका नही करता ।
इबादत में कमी होगी , जो अब भी दूर हैं उनसे ,
करूं मैं किस लिए शिकवा की वो वफा नही करता ।
की जिस राह से मेरा खुदा , गुजरा नही करता ।
बहुत मंदिर बहुत मस्जिद , यूँ तो राहों में मिलते हैं ,
पर हर एक दर पे अपना सर , झुका नही करता ।
इबादत में कमी होगी , जो अब भी दूर हैं उनसे ,
करूं मैं किस लिए शिकवा की वो वफा नही करता ।
चंद पंक्तियां पर ईश्वर की सत्ता का नकार करने वाली। अपना खुदा तो अपने ही हृदय के भीतर बैठता है और हृदय जब तक सर झुकाने का आदेश नहीं देता तब तक झुकना भी नहीं चाहिए। ऐसी स्थिति में न दूसरों से न अपने आप से न खुदा से शिकवा रहता है।
ReplyDeleteVIJAY SHINDE ji aapki sundar tippni ke liye bhut bhut aabhar.
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