Thursday, April 26, 2012

शायरी

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सैयाद को मैं पूजता था मानकर अपना खुदा ,
शायद उसे आई तरस , आजाद कर डाला मुझे|                  


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जबसे वादा किया है उसने , गम में साथ निभाने का ,
रोज दुआ करते हैं रब से , गम ही दो खुशियाँ न दो |


                         3


क्यूँ करू शिकवा मैं उससे , बेरुखाई के लिए ,
बेवफा होने से अच्छा , बेरुखा होना ही था |


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है अदा उसकी , हर शाख पे खिल जाने की |
कभी परवाह न की , उसने दिल दीवाने की |
खुल के रो भी न सके , उसकी बेवफाई पे |
कम्बख़त दे गया , कसम है मुस्कुराने की |

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