बोलो तो कैसे समझाउं , उस पगली नादान को
दिल के बदले मै दीवाना , दे आया हूँ जान को
वो कहती है पागलपन है , मेरी प्यार भरी बातें
समझा के मै हार गया , मेरे दिल के अरमान को
जब भी मैंने उससे पूछा , तेरा मेरा क्या रिश्ता
जाने क्यूँ झुठला देती है , मेरी हर पहचान को
शायद प्यार की गहराई वो , माप नहीं अबतक पाई
सोच रहा हूँ सिखला ही दूँ ,प्यार मै उस अन्जान को
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