कई रोज से न बोले , कहो क्या है शिकायत ,
गुस्सा न गया दिल से ऐसी भी क्या आफत ।
कुछ तो मुझे बताओ , क्या बात हो गई ,
नाराजगी है कैसी , कैसी ये बगावत ।
रूठे रहोगे ऐसे तो , होगा न गुजारा ,
बेचैनियाँ ये दिल की , पायेगी न राहत ।
क्या तुमको ना यकीन रहा , प्यार पे मेरे ,
या तुम्हारी कम हुई , मेरे लिए चाहत ।
मै सामने रहूँ , और तुम बात ना करो ,
ऐसी तो नही थी , यारा तेरी आदत ।
गुस्सा ही करो लेकिन , गुमसुम न रहो यूँ ,
तकरार करो मुझसे , तुमको है इजाजत ।
मुझको है ऐतवार की तुम मान जाओगे ,
ठुकराओगे कबतलक , मेरी पाक मुहब्बत ।
चलो देखते हैं हम भी , कि जीतता है कौन ,
मै सामने रहूँ , और तुम बात ना करो ,
ReplyDeleteऐसी तो नही थी , यारा तेरी आदत ...
बहुत खूब ... आदत होती नहीं बस बन जाती है ... लाजवाब शेर ... मस्त गज़ल है ...
बहुत ही खूबसूरत कहा हे
Deleteदिल को छूने वाला ..
धन्यवाद आपका दिगम्बर नासवा जी
ReplyDelete