खेवैया खड़ा रो रहा तट पे आके ,
की तूफान नैया लिए जा रहा है ।
भटका हुआ पंक्षी डाली पे सोंचे ,
हाय क्यूँ अँधेरा घना छा रहा है ।
जितना पतंगा है पर फरफराता ,
और जाल में ही फंसा जा रहा है ।
छोटा सा दीपक खड़ा है अकेला ,
हवाओं के डर से बुझा जा रहा है ।
हर एक की बस यही है कहानी ,
हर सार हमको ये समझा रहा है ।
सौ दिन में बस चार दिन हैं ख़ुशी के ,
क्यूँ रोके उसको भी ठुकरा रहा है ।
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