ऐ अजनबी , तुझसे कोई रिश्ता तो है ।
तू गैर है,पर मेरा तुझसे वास्ता क्यों है ।
चला आता है , बरबस मेरे तसव्वुर में ,
तू मुझको अपनी ओर , खिचता क्यों है ।
क्यूँ हो रहा शामिल , मेरे वजूद में तू ,
तू बार - बार मेरे दिल में , कौंधता क्यों है ।
क्या जबाब दूँ मैं, दिल के इन सवालों का,
दिले नादाँ , बातें उलझी पूछता क्यों है ।
कई बार कहा मन को , उसे जान तो ले,
बिना जाने ही तुझे , इतना सोचता क्यों है ।
कई कोशिश की, दफा दिल से तुझे करने की ,
पर मेरा अक्स ही आखिर में, रोकता क्यों है ।
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