लम्हा लम्हा बढ़ती बेकरारी मेरी,
तेरे सुरूर में ये रूह डूबा जाता है।
लगे हसरतों को पंख उम्मीदों के,
नए अरमानो का जाम छलछलाता है।
कतरे कतरे पे हो गयी है हुकूमत तेरी,
तू मुझे मुझसे ही चुराता है ।
हुआ आईना भी देखना मेरा मुश्किल,
मेरे अक्स में भी तू ही नज़र आता है।
No comments:
Post a Comment