रात की चांदनी ,सुबह की रौशनी हैं माँ ,
गम की मूर्छा में तो , जैसे संजीवनी हैं माँ ।
हम दें दर्द भी , तो भी , तू प्यार देती है ,
न जाने कौन सी मिटटी से, तू बनी है माँ ।
गम की मूर्छा में तो , जैसे संजीवनी हैं माँ ।
हम दें दर्द भी , तो भी , तू प्यार देती है ,
न जाने कौन सी मिटटी से, तू बनी है माँ ।
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