आई बहुत ही बाद में , ये इल्में मुहब्बत ,
करने से भी वफा कभी वफा नही मिलता ।
जलजला सिखा गया , जीने की ये अदा ,
खैरात में जीने का तजुर्बा नही मिलता ।
आजमां के तू भी मुहब्बत को देख ले ,
कहीं भी जा दिल को,आसरा नही मिलता ।
वो आके मस्जिद से भी ,खाली चला गया ,
समझा नही झुके बिना, खुदा नही मिलता ।
करने से भी वफा कभी वफा नही मिलता ।
जलजला सिखा गया , जीने की ये अदा ,
खैरात में जीने का तजुर्बा नही मिलता ।
आजमां के तू भी मुहब्बत को देख ले ,
कहीं भी जा दिल को,आसरा नही मिलता ।
वो आके मस्जिद से भी ,खाली चला गया ,
समझा नही झुके बिना, खुदा नही मिलता ।
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