जब भी मिलें हैं , शिकायत ही की है ,
उनके लिए क्या , मुहब्बत यही है ।
कोशिश बहुत की ,की हमदर्द बनते ,
उन्हें साथ से मेरी , राहत नही है ।
कैसे पता हो , है क्या दर्द उनको ,
बेखबरी की उनकी , आदत रही है ।
मुहब्बत उसी से , गिला भी उसी से ,
ऐसी ही उनकी , इबादत रही है ।
है मंजूर उनको , अगर फ़ासला ही ,
रजा है दिल कोई , बगावत नही है ।
नाराजगी में भी , इतना करम है ,
वो भूले न हमको , इनायत रही है ।
उनके लिए क्या , मुहब्बत यही है ।
कोशिश बहुत की ,की हमदर्द बनते ,
उन्हें साथ से मेरी , राहत नही है ।
कैसे पता हो , है क्या दर्द उनको ,
बेखबरी की उनकी , आदत रही है ।
मुहब्बत उसी से , गिला भी उसी से ,
ऐसी ही उनकी , इबादत रही है ।
है मंजूर उनको , अगर फ़ासला ही ,
रजा है दिल कोई , बगावत नही है ।
नाराजगी में भी , इतना करम है ,
वो भूले न हमको , इनायत रही है ।
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