Thursday, October 25, 2012

उनके लिए क्या मुहब्बत यही है

जब भी मिलें हैं , शिकायत ही की है ,
उनके लिए क्या , मुहब्बत यही है ।

कोशिश बहुत  की ,की हमदर्द बनते ,
उन्हें  साथ  से  मेरी , राहत नही है ।

कैसे पता हो  ,  है  क्या दर्द उनको ,
बेखबरी की उनकी , आदत रही है ।

मुहब्बत उसी से , गिला भी उसी से ,
ऐसी  ही  उनकी , इबादत रही है ।

है मंजूर उनको , अगर फ़ासला ही ,
रजा है दिल कोई , बगावत नही है ।

नाराजगी में भी ,  इतना करम है ,
वो भूले न हमको , इनायत रही है ।

No comments:

Post a Comment