अरमानें मुहब्बत में ,पिघलती चली नदी ,
महबूब से मिलने को ,मचलती चली नदी ।
आँखों में सजा रखे थे , तस्वीर सनम के ,
बेचैनी में चाहत के , उफनती चली नदी ।
राहों में जब देखा तो इक चट्टान खड़ा था ,
अपनी ही धुन में वो , बेसुध सा पड़ा था।
कहने लगा नदी से वो , जाने नही दूंगा ,
समझाती थी नदी मगर जिद पे अड़ा था ।
बोली नदी खा ले तरस , रास्ता दे छोड़ ,
सुन जरा आके मेरी , धडकनों का शोर ।
देता है आवाज, मेरा प्यार देखो बार- बार ,
आज बस जाने दे, मुझपे आजमां न जोर ।
नादान था मगरूर और नदी दीवानी हो गई ,
दौड़ती चट्टान से, टकराने को फिर वो गई ।
चीरती चट्टान , गरजती हुई निकली नदी ,
और फिर सागर के, बाँहों में जा कर खो गई ।
महबूब से मिलने को ,मचलती चली नदी ।
आँखों में सजा रखे थे , तस्वीर सनम के ,
बेचैनी में चाहत के , उफनती चली नदी ।
राहों में जब देखा तो इक चट्टान खड़ा था ,
अपनी ही धुन में वो , बेसुध सा पड़ा था।
कहने लगा नदी से वो , जाने नही दूंगा ,
समझाती थी नदी मगर जिद पे अड़ा था ।
बोली नदी खा ले तरस , रास्ता दे छोड़ ,
सुन जरा आके मेरी , धडकनों का शोर ।
देता है आवाज, मेरा प्यार देखो बार- बार ,
आज बस जाने दे, मुझपे आजमां न जोर ।
नादान था मगरूर और नदी दीवानी हो गई ,
दौड़ती चट्टान से, टकराने को फिर वो गई ।
चीरती चट्टान , गरजती हुई निकली नदी ,
और फिर सागर के, बाँहों में जा कर खो गई ।
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