वही रस्ते वही मंजिल , वहीं हर रोज चला करते हैं ,
वही कसक वही तड़पन ,यूँहीं हर रोज जला करते हैं ।
टूट जाते हैं , हकीकत के सामने सपने ,
फिर भी आँखों में वही , खाब पला करते हैं ।
दिल्लगी आदत में उनके सुमार जब से हुई ,
छुडियाँ रोज ही , दिलों पे चला करते हैं ।
पूछते ही नही , कभी हाल भी बीमारों का ,
दर्द भी दें तो , कहतें हैं भला करते हैं ।
वही कसक वही तड़पन ,यूँहीं हर रोज जला करते हैं ।
टूट जाते हैं , हकीकत के सामने सपने ,
फिर भी आँखों में वही , खाब पला करते हैं ।
दिल्लगी आदत में उनके सुमार जब से हुई ,
छुडियाँ रोज ही , दिलों पे चला करते हैं ।
पूछते ही नही , कभी हाल भी बीमारों का ,
दर्द भी दें तो , कहतें हैं भला करते हैं ।
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