आरजू विनती रही सारी बेमानी किसलिए ।
रूठ जाती है तू मुझसे रात रानी किसलिए ।
किस खता की दे रही है रोज तू मुझको सजा ,
तेरे - मेरे बीच में ये खींचा - तानी किसलिए ।
जीत तेरी हो गई ले हार मैंने मान ली ,
मान भी जा अब तेरी ये आनाकानी किसलिए।
ये बता मुझसे जियादा कौन तुझपे मर मिटा ,
बन रही है और की जाके दीवानी किसलिए ।
नींद हैं न खाब हैं बस रात काली तू नही ,
भूल गई आखिर मेरी चाहत पुरानी किसलिए ।
रूठ जाती है तू मुझसे रात रानी किसलिए ।
किस खता की दे रही है रोज तू मुझको सजा ,
तेरे - मेरे बीच में ये खींचा - तानी किसलिए ।
जीत तेरी हो गई ले हार मैंने मान ली ,
मान भी जा अब तेरी ये आनाकानी किसलिए।
ये बता मुझसे जियादा कौन तुझपे मर मिटा ,
बन रही है और की जाके दीवानी किसलिए ।
नींद हैं न खाब हैं बस रात काली तू नही ,
भूल गई आखिर मेरी चाहत पुरानी किसलिए ।
No comments:
Post a Comment