नजर मिलते ही ना जाने नजर क्यूँ फेर लेते हो ।
हवा करते हो जख्मों को दर्द को छेड़ देते हो ।
कभी तुम आजमाना दिल को कितना दर्द होता है ,
कि जब अपने ही अपनों को अकेला छोड़ देते हो ।
भुला बैठे जो सब वादे इरादे तुम मुहब्ब्त के ,
तो क्यूँ छुप - छुप के गैरों से हमारी खैर लेते हो ।
मुहब्ब्त तुम में भी है मुझमे भी है हर शै में बसती है ,
वफ़ा ठुकरा के क्यूँ मेरी खुदा से बैर लेते हो ।
हवा करते हो जख्मों को दर्द को छेड़ देते हो ।
कभी तुम आजमाना दिल को कितना दर्द होता है ,
कि जब अपने ही अपनों को अकेला छोड़ देते हो ।
भुला बैठे जो सब वादे इरादे तुम मुहब्ब्त के ,
तो क्यूँ छुप - छुप के गैरों से हमारी खैर लेते हो ।
मुहब्ब्त तुम में भी है मुझमे भी है हर शै में बसती है ,
वफ़ा ठुकरा के क्यूँ मेरी खुदा से बैर लेते हो ।
No comments:
Post a Comment